धरती को खंड-खंड करके
कई हिस्सों में बाँट दिया
कुछ हमने रखा
कुछ आपने ले लिया
मेरी धरती पे
हरियाली बहुत है
और
आपकी पे केसर
मेरी धरती पे
उमीदो की रौशनी बहुत है
और आपकी पे
ख़ामोशी की ठंडक
आपकी धरती पे
जब बरसात होती है
तो कीचड होता है??
लोग कहते हैं
हमारे यहाँ नहीं होता
मेरी धरती पे
सूरज ज्यादा रौशनी करता है
सुना है
आपसे तो
वो बहुत चिढ़ता है
हवा भी
भेद-भाव करती होगी आपसे
हमारे यहाँ
बहुत ज्यादा बहती है क्यूंकि
पता नहीं
और क्या क्या अंतर है
आपकी और मेरी धरती में
मगर
मेरी धरती पे
रहने वाले
आदमी नहीं
आदमखोर हैं
ठीक आपकी धरती के
लोगों की तरह
जिन्हें अपने स्वार्थ के लिए
मैंने
कभी राजनीति का
तो
कभी धर्म का
चोला पहने
आदमियों का
उनकी संवेदनाओं का
और उनकी परिस्थितियों का
भक्षण कर रहे हैं
धरती को विभाजित हुए
वर्षों हो गए
अब तो ये आदमखोर
बस इसके आदमियों के
टुकड़े कर रहे हैं............
-आक्रोशित कवि (अभिषेक)
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