कोई संशय नहीं है मन में
बहुत विश्लेषण से यही निष्कर्ष है कि
आसान है
बल्कि, बहुत ज्यादा आसान है
सत्य का चोला ओढ़,
कई आडंबरों का भंडाफोड़ कर देना,
क्षणभंगुर पिपसाओं को छोड़,
क्षितिज तक आशाएँ भर देना,
इतने विपरीत परिस्थितियों में भी
राम हो जाना
क्योंकि राम होने के लिए
नहीं करना पड़ता कुछ अन्यत्र
बस मर्यादाओं में रहकर,
संयम से निभाने पड़ते हैं कुछ
खास से लगने वाले आम नियम।
फिर भी लगता हो कठिन
अगर राम होना तो
सिर्फ एक ही शर्त है
कि
बाकी लोग भी बिना शर्त के
राम के तत्कालीन पात्र हो जाएं
धूल को विदा कर मन से
आत्मा के दर्पण पर
शुद्ध पटल में सत्य हो जाएं
जो स्वयं लक्षमण नहीं बन सकते
नहीं कर सकते समर्पण भाई के लिए
अपनी जैविक आवश्यकताओं का
जिनका व्यक्तिगत लोभ अधिक है
भाई से, भाई के परिवार से
उन्हें राम चाहिए
जो भरत नहीं हो सकते
नहीं हो सकते निश्छल
सारा राजपाठ, सारी संपदा
जिनके लिए भाई के
अथाह प्रेम से बढ़कर हो
उन्हें भी राम चाहिए
जो पल-पल बदलती हैं
छवि अपने प्रियतम की,
नहीं जहाँ कोई भी
स्थिर भृकुटि किसी मन की
संशय में डूब चुके जो
उन्हें भी राम चाहिए
जो नहीं करते सम्मान स्वाभिमान का
जो दसरथ-कौशल्या के वात्सल्य के
अथाह गहरे में भी संशय में हैं
उन्हें राम चाहिए
त्याग समर्पण और मर्यादा
लुप्त है जहां
मन मे जहां सबके
मंथरा बिराजी है
जहाँ साजे बेर भी देने में
आज सबरी सकुचाई है
जहाँ मित्रता में ठगा जाना सा
मन में कहीं लगता है
उन सबको बस
सब त्यागने,
देने स्वयं का बलिदान
तपता हुआ
राम चाहिए
ऐसे राम कलियुग में हर क्षण आत्मदाह कर लेते हैं
#उत्साही
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