पहाड़ों के उस पार चलेंगे,
हम तुम एक बार चलेंगे,
नदियों की अविरल धाराओं में,
ऊँचे घने सीना ताने तरुओं में
इन इमारती मकानों से दूर,
हम तब बेफिक्रे से उन्मुक्त बहेंगे,
पहाड़ों के उस पार चलेंगे,
हम तुम एक बार चलेंगे,
सारी लड़ाइयां, रुसवाईयाँ सभी,
गुस्सा तुम्हारा, ये नखरे मेरे,
सारी तन्हाइयां, अंगड़ाइयाँ सभी
छोड़कर यहीं इस पार चलेंगे,
पहाड़ों के उस पार चलेंगे,
हम तुम एक बार चलेंगे,
कचरे के सारे चादर यहीं,
गाड़ियों की धुकधुकी भी,
पन्नियों को झुरमुटों से
हम जुदा अबकी बार करेंगे
पहाड़ों के उस पार चलेंगे,
हम तुम एक बार चलेंगे।
उत्साही
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