Wednesday, 11 August 2021

“ये मेरा देश है ग़ालिब”


अरे ग़ालिब क्यों 
बेवक्त तुम मुझको छेड़ते हो
अनजाने में ही सही 
पर तुम इतिहास को भेदते हो 

जिस से तुम अनभिज्ञ हो 
वो सत्य का परिमाप है ग़ालिब
जो तुम-हम नहीं रच सकते 
वो घटता अपने आप है ग़ालिब 

तुम्हारी बुद्धिमता से काफी ऊपर 
अद्भुत सत्य का परिवेश है ये 
तुम क्या समझोगे हालात 
ग़ालिब, मेरा देश है ये 

यहाँ हर घर मंदिर 
हर नदी माता होती है 
तुम्हारे लिए दिखावा 
पर हमारी आशा होती है 

मर्यादा ह्रदय या विचारों में न सही 
संस्कारों में बराबर अपनाई है हमने 
खुद को क़त्ल करवाकर अनेकों बार 
हर वचन की लाज बचाई है हमने 

माना थोडा रूढ़ी लगती होगी सोच
मगर तुम्हारा भला ही चाहा है ग़ालिब 
खुद कष्ट में रहे हो चाहे हर दम 
मुस्कुराकर सबको मुस्कुराया है ग़ालिब 

इबादतखाने में अल्लाह 
मगर इबादत माँ-बाप की करते हैं 
झूठ का तो पता नहीं हमको 
पर हाँ, सच बोलने से डरते हैं 

माना सागर में नमक सा 
दिल में दर्द है ग़ालिब 
है जैसा भी ये 
मेरा देश है ग़ालिब 

#उत्साही

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