Wednesday, 11 August 2021

स्वतंत्रता: समझते भी हो आप??


इस क़दर मत रूबरू हो 
खुद से ऐ ग़ालिब 
कि तू खुद को भी अनजान लगे 


ये जो "पर" हैं तेरे 
पर हैं नहीं तेरे
आसरा हैं झूठ के पानी पे 
डूबती जहाज से 


जिस का रोना तेरे मुनासिब नहीं 
वो गलत हो 
ये रैन भी कतई मुनासिब नहीं 


यकीनन तू गुरूर कर 
अपनी उड़ान पर 
लेकिन 
आस्मां पर हक़ तेरा 
कतई नहीं 


स्वतंत्रता के आस्मां में 
परों के साथ 
सबसे जरुरी हैं 
जिम्मेदारी की लम्बाई 


क्योंकि बिना जिम्मेदारी की स्वतंत्रता 
लवणहीन भोजन की तरह है 


तो ग़ालिब 
रोना रोने से पहले जान लेते 
कि
जताने से ज्यादा जरुरी है 
उसे समझना 
और निभाना 


क्योंकि आप तो समझे ही नहीं 
स्वतंत्रता को 
और गुमान कर बैठे 


#उत्साही

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