यूँ तो
सब कुछ मेरा ही है
मगर फिर भी
सब अधूरा है आपके बिना
जब पहली दफा देखा था
तो लगा था
मैं ही हूँ
बस लिबास और ज़ेहन बदल गया हो
बाकी एहसास और अंदाज़ वही था
विचारो की क्रांति
हर बार इतनी आकर्षित नहीं करती मुझे
मगर
आपकी कशिश इतनी ग़ज़ब की थी
की
आपका फितूर मुझे
आपका शागिर्द बना गया
वो हौसला
वो इरादे
वो बेहतरीन मुस्कान
वो जीने की कला
वो सकारात्मक सोच
वो आँखों का ग़ज़ब का नूर
पता भी नहीं चला
कब शिद्दत से
मेरी ख्वाहिशो में आप आ गए
यदि मौका मिला
बदलने का ज़िन्दगी को
तो आप बनना चाहूंगा
क्यूंकि
मैंने देखा है
महसूस किया है
आंसुओ को पीकर मुस्कुराना
आसान नहीं होता
और फिर तो आपके आंसू
आज भी
जलजला हैं मेरे लिए
मुझे मालूम है
की आपको इल्म भी नहीं है
न ही एहतेराम है
की परदे में
हसरतो का तूफ़ान है
नहीं पता मुझे
की ये कैसी ख्वाहिश है
मगर
मेरे कलेजे का टुकड़ा
जब भी चमकेगा
तो आपकी तरह ही चमकेगा
आपकी तरह ही चहकेगा
और आपकी तरह ही
सारी फिज़ाओ में महकेगा
और वैसे भी
मैं तो इस फुलवारी के
माली का मुरीद हो गया हूँ
जो ऐसा फूल
दुनिया को दिया है
उनकी दी हुयी खाद
उनका सींचा हुआ प्यार
इस फूल की १-१ पंखुड़ी में
साफ़ साफ़ झलकता है
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता
की आँखों और लफ्ज़ो से
आप मौन हैं
कई अरसे से
मगर
जनता हूँ
कितना दर्द पीते
हर एक सांस के बाद वादा है मेरा
क्यूंकि
दर्पण को देखकर
ये अश्क कहते हैं
या तो आप मेरा प्रतिबिम्ब हो
या फिर मैं आपका
प्रतिबिम्ब........
-सिरफिरा कवि (अभिषेक)
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