Tuesday, 23 February 2016

मेरा आखरी सफर.....


देखना दोस्तों 
उस दिन क्या नजारा होगा 
जब सड़कों से गुज़र रहा 
जनजा हमारा होगा 
भीड़ लगेगी हर उस शख़्स की 
जो कभी न कभी रहा हमें प्यारा होगा 
जो आज हमसे पर्दा कर 
रूठा बैठा है 
कई कोषों दूर 
उसका भी उस दिन 
एक कंधे का सहारा होगा 
खूब सुन लिए बहाने जीते जी 
पर उस दिन न आने का कोई भी बहन 
हमें न गवारा होगा।
होठो पे मुस्कान लिए 
सबको खुश रखने की कोशिश की जीते जी
आँखों में उस दिन उन्ही के
दरिया का कारन बनूँगा मैं 
हमेशा साहिल ढूँढा दूसरों को पार लगाने 
लेकिन 
आज मेरा ही न कोई किनारा होगा। 
पीछे छोड़ 
एक घर मेरा,
जिसमे है मेरे माँ-बाप,
जिनके ख्वाब और ख्वाहिशो का चिराग मुझसे था। 
एक परिवार,
जिसकी आस-विश्वास और प्रयास मुझसे थे। 
एक स्कूल का पुराना बस्ता, जिसमे है दोस्तों की यादें 
कुछ कॉलेज की डायरियाँ 
जिसमे है आइना मेरा 
एक रंगमंच की कहानी भी है 
जो अधूरी छोड़ कर जा रहा हूँ दूसरी बार 
कुछ रिश्ते 
जिनकी ख़ुशी के लिए शायद कुछ सेकंड और रुकने का मन था मेरा 
घड़ियों का कलेक्शन की शायद समय को बाँध पाऊँ 
चाबी के छले की शायद हर मुस्कान की चाबी हो मेरे पास एक दिन 
कुछ कंचे, कुछ लम्हों की हसरते 
और एक लैपटॉप और हार्डडिस्क 
शायद जो मौत के बाद दूसरा सच है मेरा 
हालांकि 
ये सब तो कहीं न कहीं धूमिल हो भी जायेगा 
पर क्या कोई मिटा पायेगा मुझे इनकी हसरतो से 
इनकी यादो, इनकी लकीरों, इनकी मोहबत्तों,
और इनकी इबादत से 
कुछ मीठी नफरतो से 
अब तो शरीर भी ढीला पद गया है 
कान-नाक में रुई लगा दी है 
आँख भी बंद करके लेता हूँ 
रुखसत हो गयी है मेरी 
फिर भी हसरत किये जा रहा हूँ 
कि 
हर कोई चाहिए मुझे मेरे आखरी सफर में 
जिसने मेरी जिंदगी में मुझे संवरा होगा 
पता है मुझे 
मम्मीजी मुझसे लिपट के चिल्लाएँगी- उठ जा न!!! अब कभी नहीं डाटूंगी, नहीं लड़ूंगी अब... 
पापाजी हमेशा की तरह आज भी आाँखों में आंसू भरे किनारे खड़े होंगे 
पगली, पूजा बोलेगी उठो न भाईसाहब इस दूज पे भी मई ही पैसे दूंगी, राखी पे भी 
आज लाड करने के लिए 
मेरी जान, मेरे भाईसाहब तो होंगे 
मुझे लोरी सुनाने 
पर आज मई लम्बी नींद में सो चूका होऊंगा 
सभी रिश्तेदार आज भी मेरी कमी महसूस कर रहे होंगे 
भाई-बहिन के मन में सामना करने की भी न हिम्मत होगी 
और बड़ी मुश्किल से अपॉइंटमेंट्स कैंसिल करके आये,
मोबाइल साइलेंट किये खड़े हुए, 
घडी देखते दोस्तों को 
आज भी मेरी मौत मेरी एक नौटंकी लग रही होगी। 
और जल्दी जाने का मन, वही पुराण उनका बहाना  होगा। 
फूलो से खेल हमेशा, भँवरे की तरह,
आज उन्ही फूलों के नीचे दबकर जाना मुझे हरगिज़ मंजूर नहीं 
मैंने जो पंख हमेशा फ़ैलाये रखे 
उनको ढांक कर ले जाने मैं मजबूर नहीं 
मगर अब मेरी चेतना जड़ हो गयी है 
मई मूर्त से गश्त खाकर,
धरा में समाने जा रहा हूँ 
या शायद जलकर वायु में घुलने जा रहा हूँ 
जहाँ 
क्षितिज की सी रौशनी बराबर मई भी 
सूरज की किरणों सा आखरी बार जगमगाऊंगा.... 
ये मेरा आखरी सफर है 
जिसमे आज न कोई मेरी बुराई करता मुझे नजर आएगा,
क्यूँकि आज तो बस सबकी जुबान पे नाम हमारा होगा।।
न दुश्मन, न दोस्त, न घर, न परिवार, न कोई रिश्ता, न संसार,
जो ज़िन्दगी भर न हो पाया हमारा,
जाते जाते उसके दिल में बसेरा आखरी हमारा होगा 
तो हम चलते हैं 
आखरी सफर में अपने....... 
जहा न कुछ हमारा, न कुछ तुम्हारा होगा....... 
अलविदा............. 
                                                                                          - सिरफिरा कवि (अभिषेक )

Lion Of Thoughts: ख्वाब..

Lion Of Thoughts: ख्वाब..: एक चेहरा मासूम सा अपनी आँखों में लाखों सवाल लिए परेशान करता है मुझे हर रात मेरे ख़्वाब में वो ख़्वाब जो हक़ीकत से ज्यादा हसीन है वो अ...

ख्वाब..

एक चेहरा
मासूम सा
अपनी आँखों में
लाखों सवाल लिए
परेशान करता है मुझे
हर रात मेरे ख़्वाब में
वो ख़्वाब
जो हक़ीकत से ज्यादा
हसीन है
वो अक्स और उसकी शख्शियत
मेरे लिए
मेरी रूह की पहचान सी है
मगर
उसके लिए
मई एक कल्पना का सागर हूँ
जिसकी गहराई
अथाह नहीं
वरन
अगाध है
उसकी आँखों में जब जब मेरी आँखे ठहर  हैं
ऐसा मालूम होता है
की उसका दर्द मेरी साँसों में समां सा रहा हो
और उसकी चित्कार
मेरे कानो में ऐसे गूँज रही हैं
जैसे
कोई नादान
खिलौने की
ख्वाहिश लिए
मेरी ओर
टकटकी लगाये
बड़ी आस से
बस घूरे जा रहा हो
अपने अधूरे ख्वाब के लिए......