जैसे किसी उपवन में
अनगिनत
कीट
कोमल पुष्पों का
नवीन साखों का
और कोपल से पत्रों का
भक्षण कर
अपने नियत कर्म के अन्तर्गत
अपनी क्षुधा शांत कर रहे हो
किन्तु
किसी एक का कर्म
किसी दुसरे के लिए आपदा भी हो सकता है
वैसे
इन कंदराओं की सुगंध
मंदाकनी में सूर्य की पावन छवि
और
अविरल मदमस्त बहती हुयी
अनगिनत वृक्षों से छनती हुयी पवन
मुझे प्रथम भेंट में ही आसक्त कर गयी थी
संभवतः
तब बात और थी
एक रंगों से भरे अद्भुत सुरम्य
संसार को आँखे मूंदकर
सिर्फ प्रकृति के पास चले आना
मेरा
मोह ही था कदाचित
वरन वह गुरुत्वाकर्षण
इस शांति का
इतनी शीघ्र धुंधला तो नही सकता न
मगर सभी कुछ बेरंग सा हो गया
वो आकस्मिक ह्रदय प्रफुल्लित करने वाली ऊर्जा
मानो लुप्त हो गयी कहीं
अब जाने का मन कर रहा है
कभी कभी
जब पलकों से यवनिका को दूर कर
दूर तक देखने की कोशिश करता हूँ
तो
एक अनकही सी
आशा झलकती है
इन अपरिचित मुखों पर
जो न जाने क्यों अपेक्षाएं जताती हैं
मन ही मन
एक मोह का सूत
मुझे फिर जकड लेने को
जैसे तैयार हो
लेकिन नहीं
अब थमना मेरा एकमात्र स्वप्न है
जाना चाहता हूँ
इन विषम परिस्थितियों के असत्य को
यही पर अधूरा छोड़कर
किसी ऊंचाई पर
जैसे कोई विशाल पर्वत
जहाँ केवल अविरल वायु का वेग हो
न किसी प्राणी
न किसी साधन
न ही किसी परिस्थिति का हस्तक्षेप हो
वहीं पर्वत से एक
रत्नवाहिनी रिस रिस कर
बह रही हो
वह पर एक वृक्ष तान से अडिग डटा हो
उसी के नीचे मैं लेटा रहूँ
उनकी गोद में
वो सनय-सनय मेरे केषों को
सुलझाते रहें
और मैं
वायु के साथ धारा के प्रवाह के एहसास को जीता रहूँ
और वो एकटक बोलते रहे
बोलते रहे
और मैं
सुनता रहूँ
सुनता रहूँ
"वो"
ये वो नहीं जो लग रहे हैं
ये तो कोई भी हो सकता है
क्योंकि
मेरा जीवन उन्मुक्त गगन की भांति है
जिसमें हर पक्षी का समान उड़ान का सम्पूर्ण अधिकार है
और फिर
बहुत से कणों की एकरूपता से
उनके समागम से
और उनके सानिध्य से ही तो मेरा अस्तित्व है
वो
जो मुझे सुकून दे
मुझे सुने
और मेरी निर्जनता के मध्य आकर
मुझसे झगड़े
कोई भी हो सकता है
क्योंकि किसी एक के लिए कुछ भी निर्धारित नहीं है
वो
वो भी हो सकते हैं
जिन्होंने बचपन से आज तक हर क्षण मेरा साथ दिया
जिन्हें आज भी केवल दो ही सवाल आते हैं
-खाना खाया??
-तबियत कैसी है??
वो भी हो सकते हैं
जिन्होंने बचपन से आजतक
हर गलती के लिए कान पकड़ कर डाँटा
वो भी हो सकती हैं
जो हमेशा कहती
-हमारे लिए क्या लाओगे??
वो भी हो सकते हैं
जो मेरे आदर्श हैं
जिनसे लड़ियाने का अधिकार केवल मेरा है
मगर
वो अपनी व्यस्तताओं के मध्य
मेरी प्राथमिकताओं को दर किनार चुके हैं
वो भी हो सकती है
जिसने
गृह-दहलीज की परिपाटी के बाहर
रेशम के सूत के अर्थ और महत्त्व थे
वो भी हो सकते है
जिन्होंने हमेशा मुझसे लड़ाई की
मुझसे परेशान हुए
मगर मेरा साथ नहीं छोड़ा
वो भी हो सकती है
जो जब जन्मी तब बोझ थी
मगर फिर धड़कन
जिसने मेरे वात्सल्य को जागृत किया
वो भी हो सकते है
जिनकी कदर मैंने कभी नहीं की
जिनके होने को
मैंने न होना समझा
वो भी हो सकती है
जिसने प्रथम बार मेरे अधरों का स्पर्ष कर
मेरे कोरे मन को दूषित किया
वो भी हो सकते है
जिन्होंने सिर्फ मुझसे प्रतिस्पर्धा की
मुझे प्रतिद्वंदी माना
या
वो भी
जो मेरी भावनाओ का
मेरी संवेदनाओं का आदर करती थीं
चाहे
अट्टाहास करते हुए ही सही
वो भी हो सकते है
जिन्होने जीवन में रंग भर दिए
सारी संवेदनाओं को जीवंत कर दिया
क्षितिज के सभी पट खोल दिए
वो भी हो सकते है
जिन्होंने हमेशा टोका
रोका
डांटा
पथ दर्शन कराये
और खूब सारा सिखाया
वो भी हो सकती है
जिसके लिए ख़ुशी के मायने मुझसे थे
स्वप्नों का आधार मुझसे था
जिसकी हर मुस्कान
हर त्यौहार मुझसे था
जिसके अश्रुओं से धड़कने मेरी थी
वो भी हो सकती है
जो कभी एक गुड़िया की भांति हमेशा मुझे सुनती रही
और मैं हमेशा उसे अनसुना करता रहा
हमेशा उसे समझने में उलझा रहा
मगर उसे समझ न सका
जो दुनिया की रौशनी को
बहुत ऊपर से पूरा देखना चाहती है
जो सिर्फ खुशिया ढूंढती रही
और मैं हमेशा टोकता रहा
जो निभाती रही
और मैं भगत रहा
कभी मार्ग रोककर
कभी उसका हृदय तोड़कर
जो सबकी परवाह करती रही
मगर मैंने उसकी परवाह न की
जो चाहती है
सब हो
आस-पास चाहे जैसे भी
जो हमेशा खुश रखती थी
मगर मैं उसे खुश रखना भूल गया
जो हमेशा कुछ नया करना चाहती थी
मगर पता नहीं छुपकर क्यों
जो बहुआयामी थी
जिसे सबने जंजीरों में बांधना चाहा
जो बेबाक थी
मगर अनजान थी खुद से
वो भी हो सकती है
जिसने नवीनतम एहसासों का परिचय दिया
संसार को
अपने रिश्तों को
मुझको
अदम्य वात्सल्य
अद्भुत समर्पण
अनगिनत अपेक्षाओं और शिकायतों का कोष
ह्रदय में प्रवाहित रक्त की भांति
वो भी हो सकती है
जिसे खुद पर भरोषा नहीं
पर दूसरों की बातों पर बहुत है
वो भी हो सकती है
जिन्हें ठोष नीर की बारिश में
नयन से नूपुर तक
द्रवित होना पसंद है
वो भी हो सकती है
जो मेरे लिए एक आदर्श है
विपरीत ऊर्जा का
प्रतिबिम्ब की भांति
या
वो भी हो सकते है
जो मुझपर न जाने क्यों
मुझसे अधिक विश्वास करते हैं
ये जो "वो " है न
कोई भी
हो सकता है
मगर उस वृक्ष के नीचे मेरी बातों में खो जाने से पहले
वो मुझे माफ़ कर पाए
मैंने तो खुद को माफ़ कर लिया है
क्या वो मुझे माफ़ कर सकते हैं ???
मुझे प्रतीक्षा है
उसी अविरल सरिता की अतुल्य ध्वनि के मध्य
किसी जुड़वाँ प्रतिबिम्ब की
किसी कनिष्ठ
या
किसी वरिष्ठ की
मेरे किसी झूठ की
किसी जीवित मांस की गुड़िया की
किसी परी की
किसी बारिश के साथी की
किसी भालू की
किसी छोटी बहिन की
किसी बिग बी की
किसी सागर के मंथन से निकले
रमणीय सूतो से बंधे
ख्वाबो के परिंदे की
किसी जान की
एक पुष्प गुच्छ की
जिसका हर पुष्प मुकुल की भांति
दिव्य अमृत से अंकुरित हो
क्योंकि जो घट रहा है
वो घट जायेगा
कंधराओ में भू-स्खलन की भांति सब
एक दिन बिखर जायेगा
आओगे न ???
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पर्वतों में प्रतीक्षारत
आपका कवि