
न जाने किन शब्दों में
अपना हाल बयां करूँ
आंसूओं के सिवा
आँखों को और दिल को
कुछ सूझता ही नहीं
कुछ महीनो पहले
जब मुझे चंद कागज़ के
टुकड़े मिले थे
मेरी व्यावसायिक कार्य की
पहली किश्त के रूप में
उस रोज़
बड़ा विचलित हुआ था
असमंजस था
के क्या करूँगा इनका
जिनका मेरे अस्तित्व में
मृगमरीचिका जितना योगदान है
फिर एक तरकीब सूझी
जिसके तहत
कई रातो तक सोया नहीं
कुछ नया और अपना सा
करने की ख्वाहिश लिए
एक कोशिश की
सारी भावनाओं को
शब्द दिए
मोती जैसे एक एक याद को
माला में पिरोया
और फिर
उसे एक लिफाफे में
बंद कर के भिजवा दिया
सोचा खुद जाऊँ
अपने हाथ से अर्ज़ी दूँ
मगर
इतनी तड़प थी कि
रुक न पाया
और सबको चौकाने
खुस करने के बहाने उसे पोस्ट कर दिया
एक माह बीता
बड़े संघर्षो के बाद
वो आज पंहुचा
इंडिया पोस्ट के सौजन्य से
मगर
ये क्या
सारे अरमान ऐसे टूटे
जैसे शरीर से रूह निचोड़ ली हो किसी ने
किसी ने आँखों के अंदर तक जाकर
खून भर दिया हो
सिसकियो में मेरे
सिर्फ दर्द को ऐसे घोल दिया हो
जैसे एक पक्षी के पंख उखाड़ दिए हो
लिफाफो की जगह
निकले
सिर्फ newspaper के टुकड़े
जो मैंने नहीं भेजे थे..........
-टूटा-फूटा कवि(अभिषेक)
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